अलविदा सूरजकुंड मेला
अंदर जाने के कई रास्ते और हर रास्ते मे मिलने वाली कच्ची दिवारों पर खुबसुरती
से बनी पक्की पेंटिग को देख कर ही अहसास हो जाता है कि अंदर किस खुबसुरती का दीदार
होने वाला है।कदम बढ़ने के साथ लोगो की भीड़ भी बढ़ती जाती है और समय समय पर
लाउडस्पीकर से होने वाली घोषणा की तेज आवाज के बीच एक अनोखी आवाज लोगो का ध्यान ओर नजरे अपनी ओर खिंचती हैं जरा सी नजर उठा कर
देखने पर चारो तरफ तेज रफतार से गोल गोल चक्कर लगाता एक शानदार हैलिकॉप्टर नजर आता
है।
इन दृश्यो को देख कर अंदर जाने का उत्साह और बढ़ जाता है जी हाँ ये दृश्य है
हरियाणा राज्य के जिला फरीदाबाद के सूरजकुंड गांव के 40 एकड़ क्षेत्र मे (1-15
फरवरी) तक लगने वाले 30वें अंतरराष्ट्रीय सूरजकुंड हस्तशिल्प मेला 2016 का
जिसमे
कुल 23 देशो ने हिस्सा लिया और तेलंगाना को इस बार थीम राज्य बनाया गया था, जबकी
2014 मे गोआ और 2015 मे छत्तीसगढ़ को थीम राज्य बनाया गया था। इस मेले की शुरुआत
वर्ष 1987 मे हुई और साल 2013 मे इसे अंतरराष्टीय
स्तर का मेला घोषित किया
गया,मेले को भारत मे होने वाले पांच प्रमुख मौसम (सर्दी,गर्मी,वर्षा,शरद,और
बंसत)ऋतु के अनुसार ही पांच प्रमुख जोन मे बांटा गया था जिसके कारण मेले का आकर्षण
और भी बढ़ गया
लोगो की बड़ी भीड़ को अपनी ओर आकर्षित करने वाला ये मेला अब समाप्त
हो चुका है लेकिन क्या इस गांव नुमा मेले का आकर्षण भी लोगो के मन मस्तिष्क से
इसकी समाप्ति के बाद ही समाप्त हो जाएगा इस बारे मे जब मैने मेले के 11वें दिन कुछ
लोगो से बात की तो जम्मु कशमीर राज्य से आए मोहम्मद रफीक जिन्होने मेले मे कशमीरी
कपड़ो की दुकान लगाई थी उन्होने बताया “ मै इस मेले मे पहली बार जरुर आया हुँ लेकिन यहाँ
आने के बाद महसुस ही नही हुआ कि ये जगह मेरे लिए नई है यहाँ से बहुत कुछ सीखकर और
ढेर सारी यादें लेकर जा रहा हुँ बिक्री भी ठिक ठाक हुई है इन्शाअल्लाह अगली बार भी
आने की पुरी कोशिश करुँगा ”। पश्चिम बंगाल से आई नरगिसा जिन्होने मेले मे खादी और तात
से बने हुए कपड़ो की दुकान लगाई थी कहती हैं “
जितना सोचकर आई थी उतनी बिक्री तो नही हुई
लेकिन आने वाले सभी देशी और विदेशी खरीददार इतनी अच्छी तरह मिलते जुलते हैं कि
उनसे एक रिशता सा बन गया है कई विदेशी महिलाओ ने तो इस काम के बारे मे मुझसे ढेर
सारी जानकारी ली और मुझसे संपर्क करने के लिए मेरा नंबर भी लिया पैसो का तो पता
नही लेकिन इस मेले के कारण मुझे अब कई विदेशी दोस्त भी मिल गई जिसके लिए मै इस मेले की हमेशा
शुक्रगुजार रहुंगी“ बिहार के मधुबनी जिले से आई ज्वालामुखी देवी ने अपने छोटे भाई दिनेश के साथ
मधुबनी पेंटिग की स्टॉल लगाई थी मेले के बारे मे बताती हैं“ मधुबनी पेंटिग बिहार की एक
अलग पहचान तो है ही लेकिन मेले मे हमे जगह मिलने के कारण न सिर्फ मधुबनी पेंटिग को
बल्कि कलाकार के रुप मे हम भाई-बहन को भी लोगो के बीच नई पहचान मिल रही है रोज की
बिक्री अच्छी हो जाती है मेले का समय अगर 15 दिनो से ज्यादा होता तो और भी अच्छा
होता वैसे यहाँ का अनुभव हमेशा याद रहेगा अब अगले साल लगने वाले मेले का इंतजार है”। जहाँ एक ओर मेले मे अपनी
अपनी बिक्री को लेकर कुछ दुकानदार संतुष्ट तो कुछ असंतुष्ट दिखे तो वहीं दुसरी ओर
मेले मे साफ सफाई का बीड़ा उठाने वाले कई सफाई कर्मियों मे से एक मधु जो फरीदाबाद
जिले की रहने वाली हैं जब उनसे मेले के अनुभव के बारे मे पुछा तो उन्होने बताया “ मुझे मेरी नन्द ने यहाँ काम
दिलवाया है 15 दिन सफाई करने के अच्छे खासे पैसे मुझे मिल जाएँगे सुबह साढ़े दस
बजे से लेकर रात के साढ़े आठ बजे तक ये मेला चलता है हम अपने सुपरवाईजर के आदेश पे
कुछ कुछ समय बाद अपने अपने जोन मे मेले का च्क्कर लगाते हे और सफाई करते हैं लेकिन
फिर भी थकावट का अहसास जरा भी नही होता क्योंकि यहाँ रोज किसी न किसी स्कुल के
बच्चे घुमने आते हैं उनके चेहरे की खुशी देखकर मेरी सारी थकान दुर हो जाती है हम
जैसे लोगो को भी इस मेले ने रोजगार दिया है ये बड़ी बात है“। मेले मे आए स्कुल के कुछ बच्चो ने बताया
“हमारे लिए बहुत ही नया और
अनोखा अनुभव है मेले को गांव का रुप दिया गया है वो बहुत अच्छा लगा हाँ टॉयलेट
ज्यादा साफ नही हैं बाकी खाने पीने की कई चीजों मे केसर कुल्फी बहुत टेस्टी लगी
हमने बायोस्कोप भी देखा, बहुत मस्ती की अगली बार भी ग्रुप मे आना चाहेंगे तबतक के
लिए बॉय बॉय सूरजकुंड मेला”। जिला फरीदाबाद से ही अपनी माँ के साथ आई विरेनद्री
कहती हैं “मै पिछले कई सालो से
इस मेले मे आ रही हुँ और हर साल बेसब्री से मेले का इंतजार करती हुँ क्योंकि हर
बार यहाँ घर और खुद को संजाने के लिए एक से बढ़कर एक
चीजें मिल जाती हैं जिन्हे खरीदना मुझे काफी पंसद है”। गुड़गांव से आए मारियो नरोना कहते है “मै पहली बार आया हुँ लेकिन काफी अच्छा अनुभव रहा
हाँ मैने कोई खरीददारी नही कि क्योंकि चीजें कुछ ज्यादा ही मंहगी लगी पर मैने अन्य
देश एंव राज्यो से आए हमारे कलाकारो और पर्यटकों से खुब बाते की और उनके काम की भी
जानकारी ली शहर की भीड़ भाड़ से दुर आज यहाँ आकर एक बार फिर से इस बात का एहसास
हुआ कि हमारे देश की पहचान गांव मे ही रची बसी है और मेले के इस गांव से जाने का
दिल नही कर रहा”। शाहिन बाग की
यासमीन कहती हैं
“मेले को उपर से दिखने के लिए हैलीकॉपटर का
इंतजाम किया गया है लेकिन अगर ये थोड़ा सस्ता होता तो ज्यादा अच्छा था फिर भी मैने और बच्चो ने मेले मे खुब मस्ती की बच्चे भी
काफी खुश हैं“। मेले के मीडीया
प्रबंधक राजेश जून ने बताया " हर साल जुन माह से हम मेले की तैयारी मे जुट जाते हैं, इस बार लोगो की
प्रतिक्रिया काफी अच्छी रही, भीड़ इतनी थी की बैठने की जगह कम पड़ गई इसलिए हम
अगले मेले मे बेंच और शौचालय की संख्या मे बढ़ोतरी करेगें ताकि लोगो को और सुविधा
दी जा सके”।
राजेश
जून और लोगो की बातो से साफ झलक रहा है कि इस मेले ने पिछले पंद्रह दिनो तक क्या
बच्चे,क्या बड़े,क्या बुढ़े,क्या जवान, क्या देशी, क्या विदेशी, अपने सभी मेहमानो
का खुब मनोरंजन किया जिस कारण हर कोई इस मेले से लंबे समय तक जुड़ाव महसुस करेगा
और अगले सूरजकुंड मेले का इंतजार भी। भागदौड़ भरी जिंदगी मे जिस तरह सूरजकुंड मेले
ने लोगो मे एक नई उर्जा भरी है उसके लिए हम सबकी तरफ से इस मेले को दिल की
गहराईयों से शुक्रीया
और अलविदा सूरजकुंड मेला।
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